पिछले 20 सालों से राजकुमार जम्मू के बावे वाली माता मंदिर के बाहर पूजा की सामग्री, ताजे फूल और मिठाई बेच रहे हैं। इसी से इनका गुजर बसर होता रहा है। इन्हीं की तरह यहां करीब 200 दुकानदार हैं, जिनकी आजीविका ऐतिहासिक बाहु किले में बने इस माता मंदिर के दर्शन करने आए श्रद्धालुओं पर ही निर्भर रही है।
मार्च के आखिरी हफ्ते में जब लॉकडाउन लगा, तो जो मुसीबतें और मजबूरी देशभर में प्रवासियों के पलायन की तस्वीरों से बयां हो रहीं थी, ठीक वैसी ही मुश्किलों का सामना इन दुकानदारों और इनके यहां काम कर रहे लोगों ने भी किया।
मंदिर परिसर के बाहर शॉप नम्बर-35 के बाहर खड़े राजकुमार बताते हैं, "चैत्र नवरात्र शुरू होने से पहले ही हमें लॉकडाउन के कारण दुकानें बंद करनी पड़ी। पिछले ढाई महीनों में बिना कुछ कमाए, हमारा गुजारा कैसे हुआ है, यह बस हम ही जानते हैं। सरकार की ओर से तो कोई पूछ परख नहीं हुई।”
जम्मू में तो अभी मंदिर बंद ही रहेंगे लेकिन सरकार अगर इन्हें फिर से खोलती भी है तोराजकुमार खुश नहीं है। वे कहते हैं, "गाइडलाइन के मुताबिक, अगर हम प्रसाद और पूजा सामग्री नहीं बेच सकते तो फिर दुकानें खोलने का हमारे लिए तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता है।”
वे कहते हैं, ”दुकान खोलकर दिनभर खाली बैठने और शाम को खाली हाथ घर आने का कोई फायदा नहीं है। हम कैसे अपना पेट भर पाएंगे, दुकानें खोलकर नुकसान होने से बेहतर है कि हम इन्हें बंद ही रखें।”
बावे वाली माता मंदिर के महंत बिट्टा जी बताते हैं, "जिला प्रशासन ने तो आगे भी मंदिर खोलने पर पाबंदी लगा रखी है, लेकिन हमने हमारे स्तर पर मंदिर खुलने पर श्रद्धालुओं की स्क्रिनिंग और दर्शन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग जैसी व्यवस्थाएं पूरी कर ली हैं। यहां हर श्रद्धालु की थर्मल स्क्रिनिंग की व्यवस्था है, सैनिटाइजर्स भी रखे हुए हैं। हमनें मंदिर की घंटी को भी कपड़े से ढक दिया है ताकि एक ही चीज को सभी लोग हाथ लगाने से बचें।”
जम्मू के पुराने इलाके के प्रसिद्ध रघुनाथ बाजार और हरि मार्केट एरिया में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। यह बाजार तीर्थयात्रियों की भीड़ से भरा रहता था।
यहां सैकड़ों ड्राय फ्रुट्स की दुकानें हैं। एंटिक सामानों और ऊनी सामान बेचने की भी कई दुकानें और शो रूम यहां लाइन से लगे हुए हैं। यह सभी दुकानें पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के भरोसे ही चलती आई हैं।
हर साल मई और जून के महीने में लगभग 20 लाख तीर्थयात्री/पर्यटक माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आते हैं। इनमें से ज्यादातर तीर्थयात्री स्थानीय पर्यटन स्थानों पर भी जाते हैं। इससे इलाके में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा।
ड्राय फ्रूट व्यापारी मानिक गुप्ता बताते हैं, "हमारा धंधा तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर टिका हुआ है। ये दोनों ही शहर में नहीं है तो सब बंद पड़ा हुआ है। दुकानें दो महीने बाद भी बंद है और अब दुकानदारों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा भी नहीं है।”
माणिक कहते हैं कि लॉकडाउन होने के बाद से ही हमने ड्राय फ्रूट नहीं खरीदे हैं क्योंकि अब तक पुराना स्टॉक ही खत्म नहीं हुआ है। ज्यादा स्टॉक के लिए हमारे पास गोदाम भी नहीं हैं।
वे यह भी दावा करते हैं कि बिक्री के अभाव में कारोबार को चलाने की लागत ज्यादा हो रही है, इससे बहुत नुकसान हो रहा है।
रघुनाथ बाजार में दुकानदारों के एसोसिएशन के अध्यक्ष, सुरिंदर महाजन बताते हैं, "लगभग 40 से 50 प्रतिशत दुकानदारों ने दुकानों को बंद ही रखने का फैसला किया है, क्योंकि बाजार में पर्यटक और तीर्थयात्री नहीं है। वे कहते हैं,"यहां सभी दुकानदारों की यही चिंता है कि ऐसा ही रहा तो जिंदा कैसे रहेंगे।”
महाजन कहते हैं कि हमें भारी नुकसान हो रहा है लेकिन सरकार के राहत पैकेजों में हमारे लिए कुछ भी नहीं है। यहां तक कि हमारे बिजली बिल तक माफ नहीं किए गए।
शहर के सैकड़ों होटल, लॉज और गेस्ट हाउस पर्यटकों के सहारे ही हजारों लोगों को रोजगार देते थे। पर्यटक ही यहां टूर और टैक्सी ऑपरेटरों के जरिए हजारों लोगों की आजीविका का साधन थे।
ये टूर और टैक्सी ऑपरेटर इन पर्यटकों को स्थानीय गेटवे और अन्य तीर्थयात्री हॉट स्पॉट जैसे कि रियासी में शिव कोहड़ी और पर्यटल स्थल जैसे- पटनीटॉप, मंतालाई, मानसर, सुरिंसर झील, अखनूर किला, बानी, बशोली, कठुआ का रणजीत सागर बांध,सनासर भद्रवाह, किश्तवाड़ा में पद्दार, राजौरी में शाहदरा शरीफ और बूंदा अमरनाथ, नांगली साहिब, पुंछ में नूरी चंब वॉटर फॉल जैसी जगहों की सैर कराते थे।फिलहाल इन टैक्सी और टूर ऑपरेटरों के लिए भी समय खराब है।
देश अनलॉक हुआ लेकिन कटरा में अभी भी लॉकडाउन जैसा ही माहौल
कटरा बेस कैंप में 18 मार्च से ही पर्यटक नहीं हैं। माता वैष्णोदेवी के लिए यहीं से जत्था रवाना होता है। कटरा में स्थानीय बाजार, होटल और सड़कें 2 महीने पहले की तरह ही सुनसान और खाली हैं। 13 किमी के सफर के सबसे पहले स्टॉप बन गंगा की ओर जाने वाली सड़कों पर सन्नाटा रहता है। यहां हजारों दुकानें बंद पड़ी हुई हैं।
यहां होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग, कटरा बेस कैंप से गुफा मंदिर तक घोड़ों और पीठ पर तीर्थयात्री को ले जाने वाले और जरूरी चीजों की सप्लाई करने वाले लोग भी लॉकडाउन के कारण अपने-अपने गांवों को लौट गए हैं। कुछ मुट्ठीभर ऐसे लोग ही अब यहां बचे हुए हैं।
एक स्थानीय होटल व्यवसायी बताते हैं कि "18 मार्च को जब माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने यात्रा को कुछ समय के लिए रोक दिया, तभी से हमने भी व्यवसाय बंद कर लिया था।”
शहर में स्थानीय ट्रांसपोर्टर, ऑटो रिक्शा चालक और दिहाड़ी मजदूर भी अब कहीं नजर नहीं आते। तीर्थयात्रा के सहारे ऐसे करीब 35 हजार लोगों की गुजर बसर होती है। अकेले तीर्थयात्री ही स्थानीय अर्थव्यवस्था में सालाना करीब 650 करोड़ से ज्यादा का योगदान देते रहे हैं।
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