18 हजार फीट की ऊंचाई पर, खड़ी चढ़ाई, कम ऑक्सीजन और माइनस में तापमान के बीच सैनिकों को ब्लैक टॉप तक पहुंचाने वाले कर्नल जमवाल

कर्नल रणबीर सिंह जमवाल। वे तीन बार एवरेस्ट फतह कर चुके हैं। देश में इकलौते हैं जो दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों को छूकर लौटे हैं। आज उनका जिक्र इसलिए कि वे ही हैं जिन्होंने पिछले महीने भारतीय सेना को पैन्गॉन्ग इलाके की उन चोटियों तक पहुंचाया है, जिससे चीन बौखलाया हुआ है।

ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरंग हिल, मुकाबारी हिल, मगर हिल पर स्ट्रेटेजिक पोजिशन लेने को सेना ने उन्हें डिप्लॉय किया था। 18 हजार फीट की ऊंचाई वाले इन इलाकों तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती थी। ये वह इलाके हैं जहां ऑक्सीजन कम है, चढ़ाई खड़ी और सामने दुश्मन। यही वजह थी कि देश और दुनिया के बेस्ट माउंटेनियर्स में शामिल कर्नल रणबीर सिंह जमवाल को इस अहम मिशन के लिए चुना गया।

2009 में उत्तराखंड के माउंट माना पर चढ़ाई के वक्त फ्रॉस्ट बाइट की वजह से कर्नल जमवाल अपनी एक उंगली खो चुके हैं। तब वे सात घंटे तक 23 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फीले तूफान में फंसे रहे थे।

कर्नल जमवाल को फरवरी में ही लेह पोस्टिंग दे दी गई थी। वे लगातार स्पेशल फोर्स यानी टूटू रेजिमेंट के जवानों के साथ इस मुश्किल चढ़ाई की तैयारी कर रहे थे। ये तैयारी फरवरी से ही चल रही थी।
पिछले महीने इस मिशन को अंजाम दिया गया। जब कर्नल जमवाल अपनी टीम के साथ ऊपर पहुंचे तो बेहद ज्यादा ठंड थी। तापमान रात के वक्त माइनस 10-15 डिग्री तक चला जाता था।

ये मिशन इसलिए भी चुनौतीपूर्ण था ,क्योंकि उस जगह तक हमारे चुनिंदा सैनिक ही पहुंच पाए हैं। यही वजह है कि उन्हें और उनकी टीम को एक-दो घंटे सोने का मौका मिलता है, जबकि 20-20 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ रही है। इन इलाकों में सेना 24 घंटे चौकसी रख रही है, क्योंकि सामने चीन है और वह कोई भी हरकत कर सकता है।

29-30 अगस्त की रात इसी चौकसी के चलते भारतीय सेना चीन का मुकाबला कर पाई है और इसका श्रेय भी कर्नल जमवाल के हिस्से आया है। इलाके की चुनौती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां सेना के पास पीने के लिए पानी तक नहीं है। पोर्टर के जरिए बमुश्किल पानी और बाकी सामान पहुंचाया जा रहा है।

2019 में अंटार्कटिका स्थित माउंटेन विन्सन पर उन्होंने चढ़ाई की थी। विन्सन की ऊंचाई करीब 5000 मीटर है।

पिछले कुछ दिनों में भारतीय सेना ने पैन्गॉन्ग इलाके में स्पांगुर गैप, रीजुंग पास, रेकिंग पास में अपनी पोजीशन मजबूत की है, जिसकी बदौलत लद्दाख के इस इलाके में अब हम चीन की हर हरकत पर नजर रख पाएंगे। यही नहीं चीन के अहम मिलिट्री कैम्प भी अब हमारी फायरिंग रेंज में हैं।

कर्नल जमवाल बतौर जवान सेना की जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। वे इससे पहले दिल्ली में आर्मी के एडवेंचर नोड में थे। कश्मीर में सेना के हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल में वे इंस्ट्रक्टर रह चुके हैं। सियाचिन और लद्दाख के अहम इलाकों में पोस्टिंग से पहले इसी स्कूल में सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है। जम्मू के रहने वाले रणबीर सिंह जमवाल को 2013 में तेनजिंग नोरगे अवॉर्ड मिल चुका है, जो पर्वतारोहियों का सबसे बड़ा सम्मान है। उनके पिता भी सेना में थे।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी रणबीर सिंह जमवाल को तेनजिंग नोरगे अवॉर्ड से सम्मानित करते हुए। यह पर्वतारोहियों का सबसे बड़ा सम्मान है।

अप्रैल 2015 में जब नेपाल में भूकंप आया तो जमवाल अपनी टीम के साथ एवरेस्ट बैस कैम्प में थे। इस भूकंप में बेस कैम्प पर मौजूद 22 पर्वतारोहियों और शेरपाओं की मौत हो गई थी। हालांकि, कर्नल जमवाल की टीम इसमें सुरक्षित रही और बाद में उन्होंने वहां रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और कई लोगों की जान बचाई।

2009 में उत्तराखंड के माउंट माना पर चढ़ाई के वक्त फ्रॉस्ट बाइट की वजह से कर्नल जमवाल अपनी एक उंगली खो चुके हैं। उस दौरान वे 7 घंटे तक 23 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फीले तूफान में फंसे रहे थे। जो रस्सियां उन्होंने पर्वतारोहियों के लिए लगाई थीं वे बर्फ में दब गई थीं। वहीं 2011 में वे भारतीय सेना की वुमन क्लाइंबर्स की टीम के लीडर भी थे।

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Colonel Ranveer Jamwal, who climbed to the top of the troops at a height of 18 thousand feet, amid steep climbs, low oxygen and minus temperatures


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