क्या आप जानते हैं कि एक छोटे से सिगरेट बट को डी-कंपोज होने में 10 साल का वक्त लगता है। एक किलो सिगरेट वेस्ट में करीब 3000 सिगरेट बट आते हैं और भारत में हर साल करीब तीन करोड़ टन सिगरेट वेस्ट निकलता है। जरा सोचिए, इतने सिगरेट बट को डी-कंपोज होने में कितना वक्त लगेगा? यह सिगरेट बट समस्या जरूर है, लेकिन 26 साल के यंग सोशल एंटरप्रेन्योर नमन गुप्ता इसके मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के नोएडा में रहने वाले नमन सिगरेट वेस्ट मैनेजमेंट और रिसाइकिलिंग पर काम करते हैं। इसके लिए उन्होंने एक कंपनी बनाई हैं, जहां वे देश के अलग-अलग राज्यों से सिगरेट बट का कलेक्शन करके उसे रिसाइकिल करते हैं। इससे वे मॉस्किटो रिपलेंट, पिलो, कुशन, टेडी, की-चेन जैसे प्रोडक्ट बनाते हैं। नमन अब तक 300 मिलियन से ज्यादा सिगरेट बट रिसाइकिल कर चुके हैं।
पीजी में रहने के दौरान सिगरेट बट देखकर आया था आइडिया
कॉमर्स ग्रेजुएट नमन बताते हैं, “जब मैं कॉलेज टाइम में पीजी में रहता था, वहां बहुत से यंगस्टर्स को सिगरेट पीने की लत थी, कुछ तो चेन स्मोकर थे। वे लोग सिगरेट के बचे टुकड़ों को कहीं भी फेंक देते हैं। फिर कॉलेज के बाहर चाय की दुकान पर भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। एक दिन मैंने गूगल किया तो पता चला कि सिगरेट बट को डी-कंपोज होने में 10 साल का वक्त लगता है, तो सोचा कि इसमें ऐसा क्या होता है जो इसको डी-कंपोज होने में इतना वक्त लगता हैं।
पता चला कि बट में ऊपर तो कागज होता है, लेकिन फिल्टर वाला हिस्सा सेल्युलोस एसिटेट आसान भाषा में कहें तो पॉलीमर या फाइबर मटीरियल का बना होता है। इसी हिस्से को डी-कंपोज होने में 10 साल का वक्त लगता है। फिर मैंने इस मटीरियल पर करीब 4 महीने तक रिसर्च की, तो समझ आया कि इसे रिसाइकिल करके इससे बायप्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं।”
2018 में नमन ने कोड एफर्ट प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई, जहां उन्होंने सिगरेट वेस्ट को रिसाइकिल कर इससे यूजफुल प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत की। नमन बताते हैं , “सिगरेट बट के पेपर और फाइबर को अलग करते हैं, पेपर से मॉस्किटो रिपलेंट बनाते हैं, फाइबर से पिलो, कुशन, टैडी, की-चेन बनाते हैं।
सिगरेट वेस्ट कलेक्शन के तीन मॉडल बनाए हैं, 12 राज्यों से हर महीने ढाई हजार किलो सिगरेट वेस्ट आता है
1. पहले मॉडल में हम रैग पिकर्स और अनएम्प्लायमेंट वॉलेंटियर्स से सिगरेट बट के कलेक्शन का काम कराते हैं। इसके एवज में हम उन्हें बेसिक इंसेंटिव भी देते हैं।
2. दूसरे माॅडल के तहत हमने नोएडा, दिल्ली और गुडगांव के बड़े काॅर्पोरेट ऑफिस के स्मोकिंग रूम और इन शहरों के टी-शॉप्स और सिगरेट शॉप्स पर हमने वैल्यू बिन (बी-बिन) उपलब्ध कराई हैं। इन बिन को हमारे टीम मेंबर्स हर 15 दिनों में खाली करके सिगरेट बट इकट्ठा करते हैं।
3. वेस्ट कलेक्शन के तीसरे मॉडल के तहत हम देश के विभिन्न राज्यों में मौजूद अपने वेंडर्स के जरिए सिगरेट बट कलेक्ट करते हैं। इन तीनों मॉडल से हर महीने औसत करीब ढाई हजार किलो सिगरेट वेस्ट हमारे पास आता है। इसकी क्वालिटी के अनुसार वेंडर्स को 500 से 800 रुपए प्रति किलो की दर से भुगतान भी किया जाता है।”
नमन के मुताबिक, वर्तमान में केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत 12 राज्यों से सिगरेट वेस्ट आ रहा है। इसमें दक्षिण भारत के राज्यों से सबसे ज्यादा वेस्ट आता है, इसकी वजह यह है कि वहां लोग वेस्ट मैनेजमेंट के प्रति ज्यादा जागरूक हैं।
36 घंटे तक फाइबर मटीरियल को ऑर्गेनिक केमिकल से ट्रीट करते हैं
इसके बाद इस वेस्ट की प्रोसेसिंग की जाती है। नमन बताते हैं कि इसमें सिगरेट बट से पेपर कवरिंग को रिमूव कराया जाता है। फिर इसका पल्प बनाकर उसमें ऑर्गेनिक बाइंडर मिक्स करते हैं। इससे मॉस्किटो रिपलेंट कार्ड बनाते हैं, इसे जलाने से मच्छर नहीं आते।
इसके अलावा सिगरेट बट से निकलने वाले फाइबर मटीरियल को बायोडिग्रेडेबल ऑर्गेनिक केमिकल से ट्रीट किया जाता है। इस मटीरियल को 24 से 36 घंटे तक केमिकल से ट्रीट किया जाता है, फिर इसे निकालकर पानी से वॉश करते हैं, फिर सुखाकर इससे सॉफ्ट टॉयज, पिलो, कुशन, टेडी, की-चेन आदि बनाते हैं।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, डिस्ट्रीब्यूटर और सेल्समैन के जरिए बेचते हैं सभी बाय प्रोडक्ट
नमन बताते हैं कि “सिगरेट बट से बने बाय प्रोडक्ट को हम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, डिस्ट्रीब्यूटर और सेल्समैन के जरिए बेचते हैं। इसके अलावा कॉर्पोरेट से बल्क ऑर्डर लेकर भी इन प्रोडक्ट्स की डिलीवरी करते हैं।” इस काम से करीब 1000 लोग जुड़े हैं, इसके जरिए नमन करीब 40 महिलाओं को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं।
नमन की कंपनी में उनके बड़े भाई विपुल गुप्ता भी उनका साथ देते हैं। विपुल इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रोडक्ट रिसर्च का काम देखते हैं, वहीं नमन पूरा ऑपरेशन संभालते हैं। नमन ने इस कंपनी को करीब 60 लाख रुपए की लागत से शुरू किया है, वे कहते हैं कि इस साल वे ब्रेक इवन प्वाइंट पर पहुंच जाएंगे।
सिगरेट से आप खुद को डैमेज करो, लेकिन इसके वेस्ट से एनवाॅयरमेंट डैमेज नहीं होना चाहिए
नमन का कहना है कि आज तक यह क्लासिफिकेशन ही नहीं हो पाया है कि सिगरेट वेस्ट किस प्रकार के वेस्ट में आएगा। इसके लिए भी गाइडलाइन की जरूरत है, तभी लोगों में अवेयरनेस आएगी। वे कहते हैं, “मैंने कभी स्मोकिंग तो नहीं की, लेकिन पैसिव स्मोकर जरूर रहा हूं। सिगरेट एक लीगल प्रोडक्ट है और इसे पीना एक कॉमन प्रैक्टिस है, जो लोग स्मोक करते हैं मुझे उनसे कोई एलर्जी नहीं है और न ही हम स्मोकिंग को प्रमोट करते हैं। मेरा तो बस यही कहना है कि आप खुद को डैमेज करो, लेकिन इसके वेस्ट से एनवाॅयरमेंट डैमेज नहीं होना चाहिए।”
नमन कहते हैं, “मैं सोशल आरओआई के लिए काम करता हूं, जिस दिन देश में सिगरेट पर बैन लग जाएगा, सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी। हमने दो सालों में करीब 30 करोड़ सिगरेट बट से पर्यावरण काे प्रदूषित होने से बचाया है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35zYXAq
0 Comments