मां शैलपुत्री की पूजा से मिलती है शक्ति और मनोकामना पूरी करती हैं देवी सिद्धिदात्री, नौ दिन की पूजन विधि

नवरात्र में देवी के नौ रूपों की पूजा की परंपरा है। मार्कंडेय पुराण में शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक 9 देवियां बताई गई हैं। नवरात्र में इन देवियों की विशेष पूजा करने से हर तरह की तकलीफ और दुख दूर हो जाते हैं। काशी के पं. गणेश मिश्र बताते हैं कि हर देवी का नाम उनके खास रूप के मुताबिक है और देवी का रूप उनकी शक्ति के हिसाब से है। इसलिए नवरात्र में हर देवी की पूजा के लिए एक दिन तय किया है। जिससे हर देवी की विशेष पूजा का अलग फल मिलता है।

पं. मिश्र बताते हैं कि देवी शैलपुत्री की पूजा से शक्ति मिलती हैं। वहीं, ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा से प्रसिद्धि, चंद्रघंटा की पूजा से एकाग्रता, कुष्मांडा से दया, स्कंदमाता से सफलता और कात्यायनी देवी की पूजा से कामकाज में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। इनके साथ ही देवी कालरात्रि की पूजा से दुश्मनों पर जीत, महागौरी से तरक्की, सुख, एश्वर्य और सिद्धिदात्री देवी की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मार्कंडेय पुराण में नौ देवियों का श्लोक
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।

देवी शैलपुत्री: मां दुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इन्होंने पर्वतराज श्री हिमालय के यहां जन्म लिया। इसलिए इनका नाम शैलपुत्री हुआ। इनका वाहन वृषभ यानी बैल है, इन्होंने दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पद्म यानी कमल धारण किया हुआ है।

देवी ब्रह्मचारिणी: मां दुर्गा के दूसरे रूप में देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मार्कंडेय पुराण के मुताबिक इन्होंने कई सालों तक कठिन तप और अपनी शक्तियों से राक्षसों को खत्म किया। ये देवी कृपा और दया की मूर्ति हैं। इनके दाएं हाथ में माला तथा बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।

देवी चंद्रघण्टा: मां शक्ति के तीसरे स्वरूप को चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। ये देवी अपने भक्तों को अभय वरदान देने वाली तथा परम कल्याणकारी हैं। ये दुष्ट शक्तियों को नष्ट कर धर्म की रक्षा करती हैं। इनके मस्तक पर घण्टे के रूप में आधा चंद्रमा है। ये चंद्रघण्टा के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये अपने दस हाथों में खड्ग आदि अस्त्रों को धारण किए हुए हैं तथा सिंह पर सवार हैं। यह भयानक घण्टे की नाद मात्र से शत्रु और दैत्यों का वध करती हैं।

देवी कूष्माण्डा: दुर्गा जी के चौथे रूप में देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। ये सूर्य लोक की वासी हैं और इनका तेज बहुत ज्यादा है। अखिल ब्रह्मांड की जननी होने के कारण इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है। इनकी आठ भुजाएं हैं। जिनमें भक्तों की रक्षा के लिए कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा हैं। इनकी सवारी शेर है और ये अपने भक्तों के शत्रु, रोग, दुःख और डर को दूर करती हैं।

देवी स्कन्दमाता: देवी जगदंबा का पांचवां रूप स्कन्दमाता है। ये भगवान कार्तिकेय यानी स्कन्द की माता हैं। ये दाएं हाथ की नीचे वाली भुजा में भगवान स्कन्द को गोद लिए हुए हैं। इनके हाथों में कमल का फूल है और ये वरदान देने वाली मुद्रा में हैं और भक्तों को मनचाहा फल देती हैं।

देवी कात्यायनी: देवी दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। ये महिषासुर का मर्दन करनी वाली हैं। ये रुप त्रिदेवों यानी ब्रह्म, विष्णु और शिवजी के अंश से प्रकट हुआ है। देवी कात्यायनी की पूजा सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने की, तब से ये कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके हाथ अभय मुद्रा और वरमुद्रा में हैं। इनकी भुजाओं में तलवार और कमल के फूल हैं। इनकी सवारी शेर है और ये अपने भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देती हैं।

देवी कालरात्रि: देवी कालरात्रि मां भगवती का सातवां रूप है। भक्तों की रक्षा के लिए देवी दुर्गा भयानक कालरात्रि रूप प्रकट में हुईं। इनकी चार भुजाएं और तीन आंखें हैं। इनका रंग काला है। ये भयंकर और उग्र रूप लिए हैं। इनकी नाक से आग की लपटें निकलती हैं। ये गधे की सवारी करती हैं। इनकी पूजा करने से हर तरह के दुख दूर होते हैं।

देवी महागौरी: मां शक्ति के आठवें रूप की पूजा महागौरी के रूप में होती है। ये चंद्रमा और कुन्द के फूल की तरह गौरी हैं। इसी कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनकी सवारी बैल है। ये अभयमुद्रा, वरमुद्रा, त्रिशूल और डमरू को अपने हाथों में धारण किए हुए हैं। इन्होंने कठिन तप से भगवान शंकर को प्राप्त किया था। इनकी पूजा से मनोवांछित फल मिलते हैं।

देवी सिद्धिदात्री: जगदंबा दुर्गा का नौवां स्वरूप देवी सिद्धिदात्री है। ये सभी सिद्धियों को देने वाली हैं। देवी सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। ये कमल के आसन पर विराजित हैं और अपने हाथों मे चक्र, गदा, शंख, और कमल लिए हुए हैं। यह सर्वसिद्धि देने वाली और दुखों को दूर करने वाली हैं।



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